नई दिल्ली, नरेन्द्र मोदी के लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद अब लोगों में एक चर्चा शुरु होगी है कि बीजेपी का अगला अध्यक्ष कौन बनेगा? अभी वर्तमान जेपी नड्डा बीजेपी के अध्यक्ष हैं और उनका कार्यकाल पिछले साल ही पूरा हो गया था। इसे लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बढ़ाया दिया गया था। पीएम मोदी ने उन्हें अपने नए मंत्रिमंडल में मंत्री पद की शपथ दिलाकर साफ कर दिया कि बीजेपी को नए अध्यक्ष की तलाश शुरू कर देनी चाहिए। बीजेपी का नया अध्यक्ष वह व्यक्ति बनेगा जो कार्यकर्ता, संगठन और सरकार में बेहतर तालमेल बना सके। बीजेपी के नए अध्यक्ष के लिए यह दायित्व कितना चुनौतीपूर्ण रहने वाला है।
पहले राजनाथ सिंह और फिर बाद में अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने ना केवल अपने बूते बहुमत प्राप्त किया था बल्कि पीएम नरेन्द्र मोदी में यह आत्मविश्वास भरा था कि उनके हर निर्णय में पार्टी का कार्यकर्ता उनके साथ है। एक के बाद एक मिल रही विजय इसका प्रमाण थी। इस बार बीजेपी पसबसे बड़े दल के रूप में उभरी जरूर है लेकिन, वह बहुमत हासिल नहीं कर सकी। 2019 के मुकाबले उसे 63 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है।
बीजेपी नए अध्यक्ष के सामने सबसे पहली चुनौती तो कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने की ही होगी। इसके अलावा विभिन्न दलों को छोड़कर बीजेपी में आए नेताओं के संभावित अतिक्रमण से बचते हुए पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं को यह विश्वास भी दिलाना होगा कि पार्टी में उनके स्थान और पूछ परख में कोई असर नहीं पड़ेगा। जब तक पार्टी के कार्यकर्ताओं में आत्मबल की वापसी नहीं होती, तब तक किसी चमत्कारिक परिणाम की आशा करना व्यर्थ ही होगा।
बीजेपी के नए अध्यक्ष को यह काम तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले ही करना होगा क्योंकि अगले कुछ महिनों में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखण्ड़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार में है, जबकि झारखंड में झामुमो की सरकार है। लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजे बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण है। विधानसभा चुनावों में आने वाले परिणामों का प्रभाव ना केवल बीजेपी समर्थकों और कार्यकर्ताओं अपितु केन्द्र में मोदी सरकार के मनोबल पर भी पड़ेगा।
इसके साथ मुस्लिम मतदाताओं के प्रति पार्टी की नीति भी एक बड़ी चुनौती है। 18वीं लोकसभा के चुनाव परिणामों ने यह सिद्ध कर दिया है कि केन्द्र सरकार की सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की नीति को मुस्लिम मतदाताओं ने नकार दिया है। इसके अलावा केन्द्र सरकार और पीएम मोदी के पसमांदा मुसलमानों को प्राथमिकता देना भी बीजेपी के समर्थक वर्ग को पसंद नहीं आया। तो बीजेपी को अपने नए अध्यक्ष के कार्यकाल में इस पहेली को भी हल करना ही होगा।
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती उसके वैचारिक मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ संबंधों को लेकर है। राजनीतिक समीक्षक का कहना हैं कि जिस तरह बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि अब बीजेपी को संघ की जरूरत नहीं, उसका असर कार्यकर्ताओं पर पड़ा। इससे कई कार्यकर्ता जो संघ के स्वयंसेवक भी हैं वो निराश हो गए। यह परिस्थिति भी चिंतित करने वाली है। यह बात अलग है कि पीएम मोदी भी स्वयंसेवक व प्रचारक रहे हैं। नड्डा भी संघ के आनुशांगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से काम करते करते यहां तक पहुंचे हैं। इसलिए बीजेपी को एक ऐसे व्यक्ति अध्यक्ष बनाना होगा जो इन चुनौतियों से निपटते के लिए अन्य राजनीतिक दलों को हाशिए पर ढ़केल सके।