राज्य

7 जुलाई से रथयात्रा, जानिए भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा के रथ की विशेषताएं

भारत के चार धामों में से एक है जगन्नाथपुरी। कहते हैं कि यहां बाकी के तीनों धाम जाने के बाद अंत में आना चाहिए। उड़ीसा राज्य में स्थित पुरी में श्रीजगन्नाथ मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का एक प्रसिद्द हिन्दू मंदिर है जो जग के स्वामी भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। जगन्नाथपुरी को धरती का वैकुंठ कहा गया है, इस स्थान को शाकक्षेत्र, नीलांचल और नीलगिरि भी कहते हैं।

चारों वेदों के रूप में हैं विराजमान

अनेकों पुराणों के अनुसार पुरी में भगवान कृष्ण ने अनेकों लीलाएं की थीं और नीलमाधव के रूप में यहां अवतरित हुए। उड़ीसा स्थित यह धाम भी द्वारका की तरह ही समुद्र तट पर स्थित है। जगत के नाथ यहां अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। तीनों ही देव प्रतिमाएं काष्ठ की बनी हुई हैं। हर बारह वर्ष बाद इन मूर्तियों को बदले जाने का विधान है। पवित्र वृक्ष की लकड़ियों से पुनः मूर्तियों की प्रतिकृति बनाकर फिर से उन्हें एक बड़े आयोजन के साथ प्रतिष्ठित किया जाता है। वेदों के अनुसार भगवान हलधर ऋग्वेद स्वरूप हैं, श्री हरि (नृसिंह) सामदेव स्वरूप हैं, सुभद्रा देवी यजुर्वेद की मूर्ति हैं और सुदर्शन चक्र अथर्ववेद का स्वरूप माना गया है। यहां श्री हरि दारुमय रूप में विराजमान हैं। वर्तमान मंदिर का निर्माण कार्य कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंगदेव ने आरम्भ कराया था।

ऐसे होते हैं इनके रथ

विश्व विख्यात पुरी की रथयात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को प्रारम्भ होती है। रथ यात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए नीम की लकड़ियों से तीन अलग-अलग रथ तैयार किए जाते हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में देवी सुभद्रा और पीछे जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। बलराम जी के रथ को 'तालध्वज' जिसका रंग लाल और हरा होता है, देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन'या'पद्मरथ' कहा जाता है जो काले या नीले रंग का होता है। जबकि जगन्नाथ जी के रथ को 'नंदिघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं जो लाल और पीले रंग का होता है। 

जगन्नाथ जी का 'नंदिघोष' 45.6 फीट ऊंचा, बलराम जी का तालध्वज 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है। जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा शुरू होकर 3 किलोमीटर दूर गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। इस स्थान को भगवान की मौसी का घर भी माना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहीं पर विश्वकर्मा ने इन तीनों प्रतिमाओं का निर्माण किया था,अतः यह स्थान जगन्नाथ जी की जन्म स्थली भी है। यहां तीनों देव 7 दिनों के लिए विश्राम करते हैं। आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ फिर से मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। वापसी की यह यात्रा बहुड़ा यात्रा कहलाती है। जगन्नाथ मंदिर पहुंचने के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देव-विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button