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बेलेश्वर मंदिर का अनोखा है इतिहास, यहां दर्शन करने मात्र से पूरी होती है मनोकामना

महाराष्ट्र में हजारों मंदिर हैं. हर मंदिर की एक अनोखी कहानी है. आज हम ऐसे ही एक मंदिर की कहानी जानने जा रहे हैं. यह मंदिर बालाघाट पर्वत श्रृंखला की गोद में प्रकृति के सान्निध्य में स्थित बेलेश्वर का मंदिर है. बाहर से किले की तरह दिखने वाले मंदिर का मुख्य द्वार भी उतना ही प्रभावशाली है. बेलेश्वर मंदिर धाराशिव जिले के भूम तालुका के पखरूद में स्थित है . मंदिर में महादेव की पिंडी पर बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं. इसलिए इस मंदिर को बेलेश्वर कहा जाता है.

राजा सुल्तानराव ने की थी मंदिर की स्थापना
खरदा संस्थाओं के राजा सुल्तानराव राजेनिम्बलकर एक बार काशी गए. वे वहां से महादेव की 7 पिंडियां लाए और उन्होंने खारद्या के चारों ओर 7 लिंगों की स्थापना की. उनमें से एक है बेलेश्वर मंदिर. उन्होंने इस मंदिर को गुरु तुकाराम महाराज को समर्पित किया था और कहा जाता है कि मंदिर का देउलवाड़ा भी राजा सुल्तानराव राजा निंबालकर ने बनवाया था.

परिसर में है तीर्थ स्वामी महाराज की स्माधि
मंदिर के सामने परिसर में एक छोटे से मंदिर में श्री तुकाराम तीर्थ स्वामी महाराज की समाधि है. वहीं उनके सामने मंदिर में विट्ठल-रुक्मिणी की मूर्तियां हैं और मंदिर प्रकृति के करीब है. इस स्थान पर दत्तात्रेय की एकमुखी मूर्ति देखी जा सकती है। इस स्थान पर वह गुफा देखी जा सकती है जहां तुकाराम महाराज तपस्या करते थे। यह भी कहा जाता है कि इस गुफा से एक रास्ता खरदा के किले तक जाता है। मंदिर में एक इमली का पेड़ है जिसकी दो शाखाएँ हैं। उनमें से एक की पत्तियों का स्वाद मीठा होता है। तो एक शाखा की पत्तियाँ खट्टी हो जाती हैं, इसलिए भक्त इसे चमत्कार कहते हैं।

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