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मानसून का तांडव: उजड़ते घर-कस्बे-शहर, हर साल एक जैसी तबाही…

नई दिल्ली/भोपाल।  देश में अभी मानसून करीब एक महीने रहेगा। हर साल की तरह इस साल की बारिश भारत के कई हिस्सों के लिए तबाही लेकर आई है। देश की राजधानी दिल्ली समेत कई राज्य बाढ़ की चपेट में रहे। बाढ़ के चलते लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। इससे जान और माल की भारी क्षति हुई है। एक ताजी रिपोर्ट बताती है कि इस बार बाढ़ के चलते देश की अर्थव्यवस्था को 10 से 15 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
चक्रवाती तूफान, बाढ़, बेहिसाब बारिश… हमारी भौगोलिक स्थिति कहें या क्लाईमेट चेंज का असर लेकिन बांग्लादेश, चीन, वियतनाम, पाकिस्तान जैसे एशियाई देशों की तरह भारत दुनिया में बाढ़ की तबाही झेलने के मामले में सबसे खतरनाक जोन वाले देशों में से एक है। दुनिया भर में बाढ़ से जितनी मौतें होती हैं, उसका पांचवा हिस्सा भारत में होता है। देश की कुल भूमि का आठवां हिस्सा यानी तकरीबन चार करोड़ हेक्टेयर इलाका ऐसा है जहां बाढ़ आने का अंदेशा बना रहता है। भारत में 39 करोड़ आबादी बाढ़ के खतरे वाले इलाकों में रहती है। भारत में औसतन हर साल बाढ़ से 75 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है, 1600 लोगों की जाने जाती हैं तथा बाढ़ के कारण फसलों व मकानों तथा जन-सुविधाओं को होने वाली क्षति 1805 करोड़ रुपए औसतन है। पूरे देश में बाढ़ से तबाही के एक जैसे हालात हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो साल 1952 से 2018 के 65 सालों में देश में बाढ़ से एक लाख से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। 8 करोड़ से अधिक मकानों को नुकसान पहुंचा जबकि 4.69 ट्रिलियन से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ। असम, बिहार, बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य बाढ़ की तबाही हर साल झेलते हैं।
अभी अमेरिका और चीन के बाद प्राकृतिक आपदाओं से सबसे ज्यादा नुकसान भारत को ही हो रहा है। 1990 के बाद भारत को कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, 1900 से 2000 के बीच के 100 सालों में भारत में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या 402 रहीं, जबकि 2001 से 2022 के दौरान महज 21 सालों में इनकी संख्या 361 रहीं। प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ के अलावा सूखे, भूस्खलन, तूफान और भूकंप को शामिल किया है। रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज्यादा तबाही बाढ़ से होती है। अकेले बाढ़ कुल प्राकृतिक आपदाओं में 41 फीसदी हैं। बाढ़ के बाद तूफान का स्थान है। एसबीआई का मानना है कि भारत में प्राकृतिक आपदाओं से ज्यादा नुकसान होने की एक बड़ी वजह बीमा का न होना है।
देश के कई रिवर बेसिन तबाही के इलाके साबित हुए हैं। हर साल सूखे दिनों में लोग अपना आशियाना बनाते हैं और बरसात में आने वाली बाढ़ सबकुछ बहा ले जाती है। इसी के साथ किसानों के खेतों में खड़ी फसल भी तबाह हो जाती है। एशियन डेवलपमेंट बैंक के मुताबिक भारत में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी घटनाओं में बाढ़ सबसे अधिक तबाही का कारण बनती है। प्राकृतिक आपदाओं से देश में होने वाले नुकसान में बाढ़ की हिस्सेदारी करीब 50 प्रतिशत है। अनियमित मॉनसूनी पैटर्न और कुछ इलाकों में कम और कहीं अधिक बरसात इस तबाही को कुछ इलाकों में और ज्यादा बढ़ा देता है। मकान, कारोबार, फसलों को हुए नुकसान पर एक अनुमान के मुताबिक बाढ़ के कारण भारत में पिछले 6 दशकों में करीब 4।7 लाख करोड़ का आर्थिक नुकसान हुआ है।
लगातार मरम्मत के काम और रखरखाव के खर्च के बावजूद हर साल जगह-जगह तटबंध टूट जाते हैं और आसपास के इलाकों में बसे लोगों का सबकुछ बहा ले जाती है बाढ़। बिहार के जल संसाधन विभाग की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न नदियों पर बने तटबंधों में पिछले तीन दशकों में 400 से अधिक दरारें आईं और बाढ़ का कारण बनीं। भले ही, हर साल फिर करोड़ों रुपये लगाकर इनकी मरम्मत होती है लेकिन फिर से मॉनसून आते ही हालात जस के तस हो जाते हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि तटबंधों का निर्माण बाढ़ का टेंपररी समाधान ही है। लेकिन इसके आगे कोई ठोस प्लान नहीं दिखता। 2008 के कोसी फ्लड के वक्त की भारी तबाही के बाद भी तमाम वादे किए गए। मास्टरप्लान, टास्क फोर्स बनाई गई। हर चुनाव में बाढ़ नियंत्रण के बड़े उपायों के वादे होते हैं लेकिन हालात तब भी जस के तस हैं।
लगातार बन रहे इन तटबंधों का हाल ये है कि इनसे नदी का पानी एक जगह पर रोका जाता है तो दूसरे इलाकों में घुस जाता है और बाढ़ की तबाही नए इलाकों में होने लगती है। प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोग साल के तीन महीने को बाढ़ वाले महीने मानकर ही चलते हैं। बिहार-असम जैसे राज्यों के कई इलाकों में तो लोगों ने आने-जाने के लिए नाव तक खरीदकर रखा हुआ है ताकि बाढ़ के दौरान जरूरी कामकाज के लिए आ जा सकें। खरीफ के सीजन में खेती करना भी कम जोखिमभरा नहीं है इन इलाकों में। क्योंकि हर साल फसल बाढ़ में बर्बाद ही हो जाती है। हर साल सबकुछ गंवाने वाले लोगों को बाढ़ की इस समस्या के स्थायी समाधान का इंतजार दशकों से है।
मौसम विभाग के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 1 जून से 5 सितंबर तक 904.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है, जो वार्षिक मानसून औसत से 10 प्रतिशत अधिक है। आईएमडी के आंकड़ों से पता चला है कि इस अवधि के दौरान राज्य में आमतौर पर 823.9 मिमी बारिश होती है।

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