राज्य

किस उम्र में किया जाता है मुंडन संस्कार ? हरिद्वार के जोतिषी से जानें इसका महत्व

हरिद्वार. हिन्दू धर्म में मनुष्य के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक 16 प्रकार के संस्कारों का वर्णन किया गया है, जिसमें बताया गया है कि राम का नाम इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक लिया जाता. हिंदू धार्मिक ग्रंथो में यह सभी संस्कार करने जरूरी बताए गए हैं. जब बच्चा इस दुनिया में जन्म लेता है तो बहुत से संस्कार होते हैं जो उसके परिजनों को करने होते हैं. ऐसे ही बच्चे के जन्म होने के कुछ महीनो बाद मुंडन संस्कार का जिक्र होता है.

शास्त्रों के अनुसार मुंडन को “चूड़ा कर्म” भी कहते हैं. यह “चूड़ा कर्म” जीवन में सिर्फ एक बार ही होता है. बच्चों के परिजन इस कर्म को एक लघु समारोह की तरह आयोजित करते हैं जिसमें सगे संबंधी, मित्र, रिश्तेदार आदि सभी को बुलवाया जाने का रिवाज बन गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब किसी बच्चे का मुंडन होता है तो उसमें हवन आदि भी कराया जाता है जिसमें बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने की कामना की जाती है.

8 वां संस्कार है मुंडन
पंडित श्रीधर शास्त्री ने बताया कि बचपन से लेकर बुढ़ापे तक कुल 16 संस्कार होते हैं जो अपने-अपने समय पर किए जाते हैं. इसे “चूड़ा कर्म” कहते हैं. आम बोल चाल में इस कर्म को ‘मुंडन’ करवाना भी कहा जाता है. पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं की “चूड़ा कर्म” यानी मुंडन आठवां संस्कार होता है. इस कर्म को किसी पवित्र नदी के किनारे या किसी पवित्र स्थल पर किया जाता है. यदि बच्चों का यह संस्कार किसी सिद्ध पीठ स्थल पर किया जाए तो इसका और अधिक महत्व बढ़ जाता हैं.

मुंडन का महत्व
पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि मुंडन करने से बच्चे में की बल बुद्धि का विकास होता है. पंडित श्रीधर शास्त्री आगे बताते हैं कि जब तक बच्चों का मुंडन नहीं होता तब तक उसको घर से बाहर कहीं दूर नहीं लेकर जाना चाहिए है. यदि बच्चे के बाल नहीं कटवाएं गए हैं और बच्चा बाहर जाता है तो उसे पर ऊपरी साया लगने का खतरा रहता है. जिससे बच्चे को बहुत सी परेशानियां से गुजरना पड़ सकता हैं. बच्चों के पहले बाल कटवाने के बाद उसको बाहर ले जाने में कोई समस्या नहीं होती.
 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button